"परीक्षा है तगड़ी"
ठगी ने जनता की, उधेड़ी है चमड़ी ||
किसे है फिक्र पड़ी?
गेह में छिपे पड़े हैं चोर,
खोजते फिरते चारों ओर|
समस्याये कैसे हों दूर-
विवेकी ऊपर बैठे ढोर||
मुसीबत में पगड़ी, किसे है फिक्र पड़ी?
आप भी हुए आप से आप,
रो रहे कितने माई- बाप|
पुण्य जो करते थे बेख़ौफ़-
खूब वे किये जा रहे पाप||
प्रभावी नहीं जड़ी, किसे है फिक्र पड़ी?
हो गये तंत्र-मन्त्र आज़ाद,
मौन हो बैठे वाद-विवाद|
सामने कैसे आयें तथ्य-
शांत करते सत्ता के स्वाद||
प्रगति सारी पिछड़ी, किसे है फिक्र पड़ी|
भेड़ियों के आगे खरगोश,
हो चुके मनोभाव बदहोश|
अर्थपतियों की रक्षा हेतु-
लोक सत्ता में छाया जोश||
परीक्षा है तगड़ी, किसे है फिक्र पड़ी|
ठगी ने जनता की, उधेड़ी है चमड़ी ||
किसे है फिक्र पड़ी?
गेह में छिपे पड़े हैं चोर,
खोजते फिरते चारों ओर|
समस्याये कैसे हों दूर-
विवेकी ऊपर बैठे ढोर||
मुसीबत में पगड़ी, किसे है फिक्र पड़ी?
आप भी हुए आप से आप,
रो रहे कितने माई- बाप|
पुण्य जो करते थे बेख़ौफ़-
खूब वे किये जा रहे पाप||
प्रभावी नहीं जड़ी, किसे है फिक्र पड़ी?
हो गये तंत्र-मन्त्र आज़ाद,
मौन हो बैठे वाद-विवाद|
सामने कैसे आयें तथ्य-
शांत करते सत्ता के स्वाद||
प्रगति सारी पिछड़ी, किसे है फिक्र पड़ी|
भेड़ियों के आगे खरगोश,
हो चुके मनोभाव बदहोश|
अर्थपतियों की रक्षा हेतु-
लोक सत्ता में छाया जोश||
परीक्षा है तगड़ी, किसे है फिक्र पड़ी|
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