Saturday, August 8, 2020

 

जिन हाथों ने छीन लिए हैं,जीवन के अधिकार सभी।
गीत कह रहे उन्हें किए हैं,लोग अभी स्वीकार सभी।।
 
कल क्या होगा कौन जनता,आज मौज के मेले हैं।
डालर रुपयों से तो उनके,खेल खेलते चेले हैं।।
शासन करने को गिरफ़्त में,उनके हैं आधार सभी।
गीत कह रहे उन्हें किए हैं,लोग अभी स्वीकार सभी।।
 
क्षुब्ध लोकशाही कहती है,गाँव गरीब रो रहे हैं।
नेताओं के सिवा किसी के,काम न कहीं हो रहे हैं।।
सरकारों पर क़ाबिज़ बैठे,बड़े-बड़े परिवार सभी।
गीत कह रहे उन्हें किए हैं,लोग अभी स्वीकार सभी।।
 
कभी कभी सूखे तिनके भी,आँधी सा बन जाते हैं।
बेगवान तूफ़ान उठे तो,बरगद ठहर न पाते हैं।।
आकस्मिक रोगों में आते,काम कहाँ उपचार सभी।
गीत कह रहे उन्हें किए हैं,लोग अभी स्वीकार सभी।।
 
जादू टोने की होती है,जिनके पास अजीब छड़ी।
झूठ बोलने की हो जाती,दौलत उनके पास बड़ी।।
बाँट दिया करते हैं वो तो,बातों में उपहार सभी।
गीत कह रहे उन्हें किए हैं,लोग अभी स्वीकार सभी।।

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