सेवकाई की हमेशा
शीश ऊपर बोझ भारी ,पैर में जंजीर |
शोषितों की जान सकता ,कौन अन्तःपीर ?
पीठ पर नवजात लादे ,काँपना बढ़ना ,
आसमानी सीढ़ियों के ,छोर तक चढ़ना |
इन उपेक्षित नारियों की,हाय री! तक़दीर ..
भीगना बरसात जल में ,धूप में जलना ,
रोटियों के हेतु
हिम-सा ,शीत में गलना|
रोकने पर रुक न
पाये,वेदना-दृग नीर ..
सेवकाई की हमेशा ,वन्दगी करके ,
गंदगी ढ़ोते रहे
वे ,रोज़ मर-मर के |
झेलते आये युगों
से,गालियों के तीर ,
शोषितों की जान
सकता ,कौन अन्तःपीर ?३४
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