नागरिक हो रहे ख़ूब कमजोर हैं,
धूर्त्त ठग्गू मचाने लगे शोर हैं।
मानते लोग विद्वान जिनको वही,
आज ख़ामोश ऐसे लगें ढोर हैं।
ये पता ही नहीं चल रहा देखिए-
कौन इस ओर हैं कौन उस ओर हैं।
मुस्कुराहट उन्हीं के मुखों पर दिखे,
लूटने में लगे जो जमाख़ोर हैं।
जुल्म दुश्वारियों बीच साँसें तुका,
सज्जनों को रहे क्रूर झकझोर हैं।
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