Tuesday, August 4, 2020

सिर्फ़ रेत ऊपर दिखें

जो सत्ता रहती नहीं, नागरिकों के साथ।
सिर्फ़ रेत ऊपर दिखें, उनके सर्जित पाथ।।
कई करोड़ों वर्ष की, दुनियावी तारीख़।
कितनों पाये सोचिये, सच्चाई से सीख?
इंसानी इतिहास तो,नहीं कहे इतिहास।
शैतानों की क्रूरता, दर्ज अनय संत्रास।।
जो पसारते प्रेम से, न्याय विवेक विधान।
उन्हें मिटाने के लिए, हथियारों की शान।।
सर्जनात्मक है नहीं, सहजोरी की शक्ति।
अपनेपन की गोद में,पलती है अनुरक्ति।।
हम तो एक फ़क़ीर हैं, ज्ञात रही पर पीर।
अंकित की सन्सार के, उर ऊपर तहरीर।।
होता आया होएगा, निश्चय ही बदलाव।
काव्य कर्म का मर्म है, उपजना सद्भाव।।

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