Tuesday, August 30, 2016

सत्ता के विरोध

सत्ता के विरोध को देते, राष्ट्रद्रोह का नाम।
तुम्हारे भले नहीं हैं काम।। 
तुम्हारे भले नहीं हैं काम।।।
महँगाई लगती हत्यारी, मुक्त घूमते अत्याचारी।
अनाचारियों के रुतबे हैं, भय पसारते भ्रष्टाचारी।।
अर्थतंत्र का बना जा रहा, मानव पुनः ग़ुलाम।
तुम्हारे भले नहीं हैं काम।।
तुम्हारे भले नहीं हैं काम।।।
उपेक्षितों को ख़ूब सताया, सच्चों को भी धता बताया।
कन्याओं की लुटी आबरू, रंच नहीं अफ़सोस जताया।।
कालेधंधों ऊपर कोई, लगी न अभी लगाम।
तुम्हारे भले नहीं हैं काम।।
तुम्हारे भले नहीं हैं काम।।।
सीमाओं को बैरी घेरे, ध्वंस मेघ छा रहे घनेरे।
घर के अंदर अपनों में भी, खोज रहे हो तेरे मेरे।।
उग्रवाद आतंकवाद का, हुआ न काम तमाम।
तुम्हारे भले नहीं हैं काम।।
तुम्हारे भले नहीं हैं काम।।।

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