उलफ़त से भरा यह दौर नहीं,
नृप करता जरा भी गौर नहीं|
नृप करता जरा भी गौर नहीं|
कहता है बड़ी जो बात सदा,
उसमें है गरल कुछ और नहीं|
उसमें है गरल कुछ और नहीं|
जनहित में कभी तकरार न हो,
शासन का रहा वह तौर नहीं|
शासन का रहा वह तौर नहीं|
माँ जैसा मिले कुछ प्यार जहाँ,
अबतक तो मिला वह ठौर नहीं|
अबतक तो मिला वह ठौर नहीं|
आज़ादी तुका यह पूछ रही,
क्यों सबके लिए दो कौर नहीं?
क्यों सबके लिए दो कौर नहीं?
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