Thursday, August 18, 2016

वोट चाहिये वोट चाहिये,



ढोल बजाया ख़ूब जा रहा, अपने और परायों का।
ध्यान उन्हें तो रंच है नहीं, उजड़े गेह सतायों का।।
वोट चाहिये वोट चाहिये, नोट चाहिये खोटों को,
धन्नासेठों के रखवाले, सता रहे हैं छोटों को।
लूटा जाने लगा कोष है, दोनों हाथ निकायों का।
ध्यान उन्हें तो रंच है नहीं, उजड़े गेह सतायों का।।
शैतानों ने विष फैलाया, जाति-धर्म में उलझाया,
लोग विरोध न करने पायें, जनता में भय बैठाया।
इंसानों का रक्त बह रहा, प्रश्न बना चौपायों का।
ध्यान उन्हें तो रंच है नहीं, उजड़े गेह सतायों का।।
सपनों वाली स्वर्ण कहानी, दे न सकी दाना-पानी,
व्याप्त हो चुकी है सत्ता में, अब मनचाही मनमानी।
खेला जाने लगा खेल है, जादू भरी कलायों का।
ध्यान उन्हें तो रंच है नहीं, उजड़े गेह सतायों का।।105

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