Saturday, August 27, 2016

ठगों को बड़ी

ठगों को बड़ी कुर्सियाँ मिल रही हैं,
यहाँ चोटियाँ दाढ़ियाँ हिल रहीं हैं।
उन्हें शान्ति का दूत बतला रहे अब,
कि जो वर्दियाँ क्रूर क़ातिल रहीं हैं।
नहीं प्यार की राह तक जानते वह-
जिन्हें शक्तियाँ श्रेष्ठ हासिल रहीं हैं।
सही बात है राजपथ की नज़र से-
घनी बस्तियाँ पूर्ण ओझिल रहीं हैं।
वहाँ से भले न्याय की कल्पना क्या-
जहाँ चौकियाँ नित्य आदिल रहीं हैं।
बदलने लगी राजनैतिक लहर अब-
सदन में तुका साढ़ियाँ खिल रहीं हैं।

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