Saturday, March 5, 2016

vyatha


माना जीभ कटा भी लोगे, तन को दफ्न करा भी दोगे| 
फिरभी लोकतन्त्र बोलेगा, फिरभी लोकतन्त्र बोलेगा||
चालाकी से चतुराई से, धन बल छल की अधिकाई से,
सुप्त नहीं चेतनता होगी, आकर्षक स्वर शहनाई से|
माना मूर्ख बना भी लोगे, मौलिक स्वत्व नहीं भी दोगे|
फिरभी लोकतन्त्र बोलेगा, फिरभी लोकतन्त्र बोलेगा||
शिक्षा पथ के हैं अनुयायी, न्याय राह जनहित अपनायी|
भारत भव्य बनायेंगे ही, यह सौगन्ध सोचकर खायी||
माना वस्त्र छिना भी लोगे, माटी संग मिला भी दोगे|
फिरभी लोकतन्त्र बोलेगा, फिरभी लोकतन्त्र बोलेगा||
तर्क बुद्धि के यंत्र हमारे, प्रज्ञा सिंचित मन्त्र हमारे|
रोके नहीं रुकेंगे प्यारे!, संवैधानिक यन्त्र हमारे||
माना दृग निकला भी लोगे, लाखों द्रोह लगा भी दोगे|
फिरभी लोकतन्त्र बोलेगा, फिरभी लोकतन्त्र बोलेगा||

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