Sunday, September 11, 2016

/////////( युगप्रबोध)/////////

/////////( युगप्रबोध)/////////
नहीं बिकेंगे नहीं बिकेंगे, हत्या के हथियार।
यही है युगप्रबोध दरकार।
यही है युगप्रबोध दरकार।।।
छोड़ो तो आदत शैतानी, मत मारो आँखों का पानी।
दौर हाजिरे चाह रहा है, करो आचरण अब इंसानी।।
नहीं पढ़ेंगे नहीं पढ़ेंगे, ठगुओं के अख़बार।
यही है युगप्रबोध दरकार।।
यही है युगप्रबोध दरकार।।।
विज्ञापनी नशीले नारे, तस्करियों के रस्ते सारे।
निश्चय बंद कराने होंगे, कालाबाज़ारी के द्वारे।।
नहीं बनेंगे नहीं बनेंगे, धन के हेतु शिकार। 
यही है युगप्रबोध दरकार।।
यही है युगप्रबोध दरकार।।।
टुकड़ों टुकड़ों का बँटवारा, त्याग हमारा भोग तुम्हारा।
ख़ूब विचार लिया है हमने, ज़ल्लादों ने जाल पसारा।
नहीं डरेंगे नहीं डरेंगे, करने से उपचार।
यही है युगप्रबोध दरकार।।
यही है युगप्रबोध दरकार।।।
हटाना होगा ये अंधेर।।।

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