Monday, April 3, 2017

सुख का वृन्दावन



दुखदायक जंगल उग आया, सुख का वृन्दावन चला गया|
अब केवल सुधियाँ बाकी हैं, मधु मौसम पावन चला गया||

भूखे-प्यासे लघु गाँवों को, पीपल बरगद की छाँवों को,
शासन पाकर नायक भूले, जब सेवादल के पाँवों को|
तब बिखर गये साथी उनके, वह दौर सुहावन चला गया|
अब केवल सुधियाँ बाकी हैं, मधु मौसम पावन चला गया||

विपदा गर्दन को कसती है, रोटी को भूख तरसती है,
जिनसे आशायें थी उनकी, बातों से आग बरसती है|
जो पल में तपन बुझाता था, वह शीतल सावन चला गया|
अब केवल सुधियाँ बाकी हैं, मधु मौसम पावन चला गया||

यह तेरा है, वह मेरा है, दूषण नफ़रत ने घेरा है,
जिस ओर नजर दौड़ाता हूँ, उस ओर प्रचंड अँधेरा है|
अलगाव दुराव प्रभावी है, प्रिय ह्रदय मिलावन चला गया|
अब केवल सुधियाँ बाकी हैं, मधु मौसम पावन चला गया||

कुछ पट्टे बंधे दुपट्टे हैं, अनुभव तो कडुवे खट्टे हैं,
झुण्डों में कुछ चट्टे- बट्टे, लटकाये फिरते कट्टे हैं|
उद्घोष हो रहा भयाक्रांत,गायन मनभावन चला गया|
अब केवल सुधियाँ बाकी हैं, मधु मौसम पावन चला गया||


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