Wednesday, April 12, 2017

स्वर्ण सी शुद्धता

ये न समझो कि ऐसा चलेगा सदा,
जो गलत है गलत वो खलेगा सदा|
टहनियाँ लाख छाँटो मगर वृक्ष तो,
पर हितों के लिए ही फलेगा सदा|
नीर परमार्थ सरि से बहे अनवरत,
बर्फ इस लक्ष्य से ही गलेगा सदा|
सृष्टि में ज़िन्दगी का नहीं अंत हो,
प्यार तो प्यार है वो पलेगा सदा|
स्वर्ण सी शुद्धता चाहता जो 'तुका'-
अग्नि के ताप में वो जलेगा सदा|

No comments:

Post a Comment