डॉ. तुकाराम वर्मा
आपने हमको सराहा और हमने आपको ,
सर्जना की इस तरह तौहीन मत करिए |
ज्यों चमकते हैं न तारें सामने आदित्य के ,
त्यों न अविवेकी कभी आगे रहे साहित्य के ,
रंग जीवन की प्रकृति के अंग हैं पर साथियो!-
श्वेत वस्त्रों की प्रभा रंगीन मत करिए|
काव्य तो निष्पत्ति करता है सरस आनन्द की,
आंतरिक दुर्गन्ध हर के गंध दे मकरंद की,शब्द साधक हो सखे तो स्वार्थ की अभिव्यक्ति से -सज्जनों की जिंदगी ग़मगीन मत करिए |
त्यागना अनिवार्य है अज्ञान के अभिमान को ,
मर्तबा इंसानियत का दीजिये इन्सान को ,
जिंदगी भरपूर जीना चाहते हो तो कभी -
शीश पर शैतानियत आसीन मत करिए|
आधुनिक युग मानता हूँ अर्थ का संसार है ,
प्यार से फिरभी सरस कोई नहीं व्यवहार है,
सर्जना की शक्ति से कुछ शक्तिशाली है नहीं-
लेखनी के वीर मन को हीन मत करिए|
Friday, April 22, 2011
श्वेत वस्त्रों की प्रभा
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