Friday, April 22, 2011

श्वेत वस्त्रों की प्रभा

                          डॉ. तुकाराम वर्मा 




आपने   हमको   सराहा   और   हमने आपको ,
सर्जना  की   इस    तरह   तौहीन   मत करिए |


ज्यों   चमकते   हैं न  तारें  सामने आदित्य के ,
त्यों न  अविवेकी  कभी  आगे  रहे साहित्य के ,
रंग जीवन की  प्रकृति  के अंग हैं पर साथियो!-
श्वेत   वस्त्रों    की   प्रभा   रंगीन   मत  करिए|


काव्य  तो निष्पत्ति करता है सरस आनन्द की,
आंतरिक   दुर्गन्ध  हर   के  गंध  दे  मकरंद की,
शब्द साधक हो सखे तो स्वार्थ की अभिव्यक्ति से -
सज्जनों   की  जिंदगी   ग़मगीन   मत  करिए |


त्यागना  अनिवार्य  है अज्ञान  के  अभिमान को ,
मर्तबा    इंसानियत   का   दीजिये   इन्सान को ,
जिंदगी   भरपूर   जीना   चाहते   हो  तो   कभी -
शीश  पर     शैतानियत    आसीन   मत  करिए|


आधुनिक   युग  मानता   हूँ अर्थ  का  संसार है ,
प्यार  से  फिरभी  सरस  कोई   नहीं  व्यवहार है,
सर्जना  की शक्ति से  कुछ  शक्तिशाली है नहीं-
लेखनी  के   वीर   मन   को  हीन   मत   करिए|

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