Thursday, April 21, 2011

शुचिता की कसौटी

-डॉ. तुकाराम वर्मा
    भ्रष्टाचार के विरुद्ध श्री अन्ना हजारे के उपवास के उपरांत गठित की जाने वाली ड्राफ्टिंग कमेटी के सदस्यों के बीच में कुछ शक उत्पन्न हो रहा  हैं, वयोवृद्ध अधिवक्ता श्री शांतिभूषण के ऊपर अनेक आरोप माननीय दिग्विजय सिंह तथा माननीय अमर सिंह के द्वारा सी .डी. प्रकरण के माध्यम से लगाये जा रहे हैं | इस समाचार को भारतवर्ष के करोड़ों लोग दूरदर्शन पर देख सुन रहे हैं लेकिन इसकी सत्यता किसी पक्ष की और से नागरिकों को प्रभावित नहीं कर पा रही हैं जबकि उपवास इस बात को ध्यान में रख कर किया गया था कि इस आन्दोलन के सभी सदस्य शुचिता कि कसौटी पर शतप्रतिशत खरे होंगें | यहाँ विचार के योग्य प्रश्न उभरता हैं कि एक अधिवक्ता और एक राजनेता के बीच में सामान्य जनता किसे अधिक महत्व देगी विशेष रूप से राष्ट्र सेवा के मार्ग में | सामान्य रूप से क्या यह देखने में नहीं आता हैं कि एक अधिवक्ता किसी भी अपराधी , अत्याचारी, भ्रष्टाचारी अथवा बलात्कारी   को भी बचाने के   लिए आगे आ जाता हैं महज़ अपनी फीस के लालच में और यदि एक राजनेता भी यही करता हैं तो उसे भी अधिवक्ता महोदय बचाने का हर संभव प्रयास  करते हैं | ऐसी विषम स्थिति में आम जनता क्या करे | ऐसा तो नहीं कि यह भी एक अभिनय सिर्फ कार्पोरेट समाज को बचाने के लिए कुछ तथाकथित विद्द्वानों के द्वारा रचा गया हो और एक नेक सच्चा इन्सान  अन्ना इनके मीठे सुहावने सपनों के सफ़र का हमराह बन गया हो , यदि ऐसा नहीं हैं तो क्यों आज श्री अरविन्द केज़रीवाल को यह कहना पड़ा कि कमेटी का कोई सदस्य इस्तीफा नहीं देगा क्या एक लोकतान्त्रिक व्यवस्था   के अंतर्गत   कोई किसी पर ऐसा प्रतिबंध लगा सकता हैं और वह विधि सम्मत हैं शायद नहीं | भ्रम कि स्थिति से वचने का रास्ता खोजा जाना ही जनहित एवं राष्ट्र हित में होगा |

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