Friday, April 8, 2011

ज्ञान के प्रकाश का कहाँ हुआ प्रभात है

                                                           -डा० तुकाराम वर्मा 
अंधकार  है  अभी  , अभी  निघात  घात है ,
ज्ञान  के  प्रकाश  का , कहाँ हुआ प्रभात है?

स्नेह सभ्यता वहां ,प्रभाव क्या दिखा सके, 
स्वार्थ सिद्धि के लिए , जहाँ अशेष  रात है | 

चेतना प्रबोध का , अभाव क्यों न हो वहां, 
अर्थ - तंत्र   का  जहाँ,  बलात  बज्रपात है |

लोकराज्य  जानता , परन्तु  मौन हैं सभी, 
ध्वंस के कगार पर, खड़ा मनुष्य स्यात है|

लोग तो  स्वतंत्र हैं,  परन्तु मुक्त  रूप से,
हो  रही कहीं नहीं , तुका  स्वतंत्र  बात है |



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