-डा० तुकाराम वर्मा
अंधकार है अभी , अभी निघात घात है ,ज्ञान के प्रकाश का , कहाँ हुआ प्रभात है?
स्नेह सभ्यता वहां ,प्रभाव क्या दिखा सके,स्वार्थ सिद्धि के लिए , जहाँ अशेष रात है |
चेतना प्रबोध का , अभाव क्यों न हो वहां,अर्थ - तंत्र का जहाँ, बलात बज्रपात है |
लोकराज्य जानता , परन्तु मौन हैं सभी,ध्वंस के कगार पर, खड़ा मनुष्य स्यात है|
लोग तो स्वतंत्र हैं, परन्तु मुक्त रूप से,हो रही कहीं नहीं , तुका स्वतंत्र बात है |
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