"सर्वोदय नवनीत"
प्रकृति प्रदर्शन बीच गूँजने, लगा सरस संगीत,
लुटाने लगी शरद ऋतु प्रीत|
लुटाने लगी शरद ऋतु प्रीत||
चारों ओर सुखद हरयाली, नैसर्गिक छवि भव्य निराली,
खेतों में दिखती स्वर्णिम-सी, पके धान की डाली-डाली|
अरमानों के शुभागमन की, साफ दिख रही जीत|
लुटाने लगी शरद ऋतु प्रीत|
लुटाने लगी शरद ऋतु प्रीत||
नभचर जलचर थलचर गाते, एकसाथ आनन्द मनाते,
बैर-भाव का गया ज़माना, सब सबको अब हैं अपनाते|
अपनेपन का गौरव बिखरा, सब लगते हैं मीत|
लुटाने लगी शरद ऋतु प्रीत|
लुटाने लगी शरद ऋतु प्रीत||
सच्चे लोकतन्त्र अनुयायी, समझें सम्विधान प्रभुतायी,
ज्यों मौसम है सर्वहितैषी, त्यों विकास हो जन सुखदायी|
अबतो सबको देना ही है, सर्वोदय नवनीत|
लुटाने लगी शरद ऋतु प्रीत|
लुटाने लगी शरद ऋतु प्रीत||
प्रकृति प्रदर्शन बीच गूँजने, लगा सरस संगीत,
लुटाने लगी शरद ऋतु प्रीत|
लुटाने लगी शरद ऋतु प्रीत||
चारों ओर सुखद हरयाली, नैसर्गिक छवि भव्य निराली,
खेतों में दिखती स्वर्णिम-सी, पके धान की डाली-डाली|
अरमानों के शुभागमन की, साफ दिख रही जीत|
लुटाने लगी शरद ऋतु प्रीत|
लुटाने लगी शरद ऋतु प्रीत||
नभचर जलचर थलचर गाते, एकसाथ आनन्द मनाते,
बैर-भाव का गया ज़माना, सब सबको अब हैं अपनाते|
अपनेपन का गौरव बिखरा, सब लगते हैं मीत|
लुटाने लगी शरद ऋतु प्रीत|
लुटाने लगी शरद ऋतु प्रीत||
सच्चे लोकतन्त्र अनुयायी, समझें सम्विधान प्रभुतायी,
ज्यों मौसम है सर्वहितैषी, त्यों विकास हो जन सुखदायी|
अबतो सबको देना ही है, सर्वोदय नवनीत|
लुटाने लगी शरद ऋतु प्रीत|
लुटाने लगी शरद ऋतु प्रीत||
No comments:
Post a Comment