Thursday, October 31, 2013

आचरित गीत



कवि ने शब्दशक्ति से खोले, युगप्रबोध के नैन,
दिया है चिंतन का सुख-चैन| 
दिया है चिंतन का सुख-चैन||

सबको अपनों -सा पहचाना, नहीं भेद- भावों को माना,
उपेक्षितों घर आना- जाना, जो भी भोज मिला वह खाना|
जीवन भर परार्थ कृत्यों को, किया बंधु दिन-रैन, 
दिया है चिंतन का सुख-चैन| 
दिया है चिंतन का सुख-चैन||

इस दुनिया को इंसानों ने, साधक चिंतक विद्वानों ने,
रहने योग्य समाज बनाया, शील विनय से गुणवानों ने|
तार्किकता से सदा मिटाया, जड़ता मूलक दैन,
दिया है चिंतन का सुख-चैन| 
दिया है चिंतन का सुख-चैन||

वर्तमान जीवन विज्ञानी, तजी धारणायें पाषाणी,
सर्वोदयी नीति अपनायी, सोच बनायी है कल्याणी| 
संवैधानिक विधि से पकड़ी, लोकतंत्र की गैन,
दिया है चिंतन का सुख-चैन| 
दिया है चिंतन का सुख-चैन||

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