दीप बुझते रहे हम जलाते रहे,
रौशनी से भरे गीत गाते रहे|
फूल तो फूल है सैकड़ों शूल भी,
कंठ से मुस्कराकर लगते रहे|
मौसमों की कड़ी मार सहते हुये,
राष्ट्र को गेह जैसा सजाते रहे|
रोज सामर्थ्य से भी अधिक जानिये,
बोझ हारे -थकों के उठाते रहे|
शब्द की शक्तियों से करोड़ों तुका,
सुप्त मानव हमेशा जगाते रहे|
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