Thursday, July 30, 2015

शब्द की शक्तियों



दीप बुझते रहे हम जलाते रहे,
रौशनी से भरे गीत गाते रहे|

फूल तो फूल है सैकड़ों शूल भी,
कंठ से मुस्कराकर लगते रहे|

मौसमों की कड़ी मार सहते हुये,
राष्ट्र को गेह जैसा सजाते रहे|

रोज सामर्थ्य से भी अधिक जानिये,
बोझ हारे -थकों के उठाते रहे|

शब्द की शक्तियों से करोड़ों तुका,
सुप्त मानव हमेशा जगाते रहे|

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