Monday, June 17, 2013

क्रूरों का जब साथ निभाने, लगे लोक सरकार|
रुके तब कैसे अत्याचार||
रुके तब कैसे अत्याचार|||

जब कानून व्यवस्था रोये, शासक निज विवेक जब खोये,
पैर पसार ओढ़कर चादर, जब धर्माचारी भी सोये |
सांप्रदायिक ज्वाला में जब, जलते घर- परिवार|
रुके तब कैसे अत्याचार||
रुके तब कैसे अत्याचार|||

जब कि अर्थ बन जाये स्वामी, संरक्षक हो जाये कामी,
सदाचार को कदाचार की, डर कर करनी पड़े गुलामी|
जन रक्षक जब भक्षक बनकर, करता भ्रष्टाचार |
रुके तब कैसे अत्याचार||
रुके तब कैसे अत्याचार|||

जब भूखे को मिले न रोटी, वोट-बैंक हो दाढ़ी-चोटी,
जब पुत्रों के आगे कटने, लगे पिता-माता की बोटी|
धनपशु जब करने लगते हैं, नारी का व्यापार|
रुके तब कैसे अत्याचार||
रुके तब कैसे अत्याचार|||

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