Sunday, June 23, 2013

खो गया संसार में नैतिक ह्रदय पावन कहाँ?
साफ हैं लेकिन सुहावन आधुनिक आनन कहाँ?

नागरिक नेतृत्व जिसका आचरण से मान लें,
राष्ट्र जीवन में रहा वो स्वच्छ सञ्चालन कहाँ?

चित्त की चंचल तरंगें शान्त जो करता रहा,
आज उस संगीत के सौंदर्य का गायन कहाँ?

देखते ही शीघ्र जिसको मुस्कराये आदमी,
आज अपने बीच में वो प्रेम अभिवादन कहाँ?

क्यों न हो हुड़दंगियों का बोलवाला देश में,
राजनैतिक हस्तियों में उच्च अनुशासन कहाँ?

लोकतांत्रिक सोच से नियमावली जो है बनी,
हो रहा उसका यहाँ सम्मान अनुपालन कहाँ? 

काव्य के परिवेश से उपजी 'तुका' चिंता यही, 
भावनाओं से भरा सहकार अपनापन कहाँ?

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