Monday, June 3, 2013

ठग विद्या के अभियानों से शैक्षिक दीप जलाने की, 
बंधु! प्रतीक्षा अभी हो रही पय की नदी बहाने की|

सीधे- साधे इंसानों से जय- जयकार कराने की, 
धर्म और कुछ नहीं नसैनी है सत्ता हथियाने की|

कोई उनसे क्यों टकराये जिन्हें प्रदर्शन प्यारा हो,
सत्ता आखिर आदत छोड़े कैसे रौब दिखाने की?

सरकारी व्यवहार देखिये शोध परक सच्चाई का,
खूब नई तरकीब चली कागज़ पर पेड़ उगाने की|

उसकी कहाँ जुगाड़ नहीं है सत्ता के गलियारे में,
जिसने सीखी कला अनोखी पीने और पिलाने की|

राजनीति की चाल यहीं है 'तुका' गरीबों के हित में,
कुछ नीचे लाओ फिर सोचो नभ की ओर उठाने की|

No comments:

Post a Comment