हमें मालूम है सत्ता
तुम्हारे पैर की दासी|
जिसे आदेश देती आ रही
है आदि से काशी||
तुम्हें हर हाल में
अज्ञानियों से संधि करनी है,
अनैतिक कारनामों से
तिजोरी खूब भरनी है|
तुम्हारी वो चतुर माँ -सी सिखाती लूट बदमासी,
हमें मालूम है सत्ता
तुम्हारे पैर की दासी|
जिसे आदेश देती आ रही
है आदि से काशी||
भरे बाजार में हरदम
तुम्हारा ढोल बजता है,
गुजरते हो जहाँ से
स्वर्ग-सा वो मार्ग सजता है|
तुम्हें सम्मान देने
को खड़े रहते मधुरभाषी|
हमें मालूम है सत्ता
तुम्हारे पैर की दासी|
जिसे आदेश देती आ रही
है आदि से काशी||
तुम्हारे पास में संभव
नहीं है संत का जाना,
नई तकनीक धागों से
बुना ताना तथा बाना|
तुम्हे घेरे सदा रहते
सहस्रों स्वार्थ अभिलाषी,
हमें मालूम है सत्ता
तुम्हारे पैर की दासी|
जिसे आदेश देती आ रही
है आदि से काशी||
No comments:
Post a Comment