Sunday, June 23, 2013

पहले कलुष भावना उर से, बाहर करिये आप|
तभी समझोगे पर संताप|
तभी समझोगे पर संताप||

सदाचार के हेतु ह्रदय को, निर्मल रखना होगा|
कहते जो शत प्रतिशत उसको, पालन करना होगा||
अपने सुख के लिए करोगे, जब तुम नहीं विलाप|
तभी समझोगे पर संताप|
तभी समझोगे पर संताप|| 

ज्यों मन को धन शक्ति सर्वथा, शान्ति नहीं देती है|
त्यों न वदन को स्वस्थ्य बनाती, लोभ मोह खेती है||
नैतिक नियमों से समाज का, जब कि करोगे माप| 
तभी समझोगे पर संताप|
तभी समझोगे पर संताप|| 

परहित में अर्पित रहने से, शाश्वत सुख मिलता है|
शूलों बीच फूल जो पलता, वो कितना खिलता है?
जब विवेक से परखा जाये, क्या होता है पाप?
तभी समझोगे पर संताप|
तभी समझोगे पर संताप|

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