Sunday, January 19, 2014

आज देश के मुख्यासन को, छीन रहा शैतान,
कहाँ हैं प्राणवान इन्सान?
कहाँ हैं प्राणवान इन्सान?

पूँजीवादी साथ खड़े हैं, धर्मों के पसरे झगड़े हैं,
सत्ता लोभी सौदायी ने, बाँटे आकर्षक टुकड़े हैं|
क्रूरों की सेवा में उतरे, बड़े- बड़े विद्वान, 
कहाँ हैं प्राणवान इन्सान?
कहाँ हैं प्राणवान इन्सान?

बूढ़े भूतकाल को गाते, युवा भविष्य हेतु घबराते,
वर्तमान की आपाधापी, देख प्रौढ़ आँसू छलकाते|
परख तमाशा रहे विवेकी, ज्ञानवान गुणवान,
कहाँ हैं प्राणवान इन्सान?
कहाँ हैं प्राणवान इन्सान? 

न्याय- नीतियों के रखवाले, अपने मुँह पर ताले डाले,
शिव सुन्दर सच उद्घोषों के, पड़े यहाँ पर अब हैं लाले|
खींचतान में उलझ गया है, अपना राष्ट्र विधान,
कहाँ हैं प्राणवान इन्सान?
कहाँ हैं प्राणवान इन्सान?

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