Monday, January 6, 2014

आज भरोसा टूट रहा



सत्ता में वह नहीं इरादा, जो परपीर निवारण करता,
अत्याचारी संघठनों से, दिखे प्रशासन डरता-डरता|

बाजारों में लूट मची है, दो के बीस बनाये जाते,
हालातों से उपजे आँसूं ,नहीं दृगों के बाहर आते|

आज भरोसा टूट रहा है, संरक्षण की बाहों का,
धर्मतंत्र अवरोध बना है, लोकतंत्र की राहों का|

राजनीति की रीति हो गई, लोकलुभावन नारों की,
भीड़ लगी है हाथ पसारे, गिनती नहीं कतारों की|

उनको फिक्र गरीबों की है, इनको दौलतवालों की,
डसने को तैयार खड़ी है, पग-पग टोली व्यालों की| 

कचरों के ढेरों में कितने, बच्चे भूख मिटाते है,
नग्न वदन नालों पर लाखों, कैसे रात बिताते हैं?

सच्चाई को नहीं देखते, यहाँ वोट के व्यापारी,
किस दुर्गति में पहुँचा दी है, भोगवादियों ने नारी|

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