Tuesday, February 18, 2014

वो चाह रहा खोजना

वो चाह रहा खोजना संकट निदान है,
जिसके न रही हाथ में सत्ता कमान है|

नायक उसे स्वदेश का जनता बता रही.. 
जो प्यार भरी राह का प्रेरक जवान है|

उसको न रहा बैर है इन्सान से कभी-
जो मान रहा शान से भारत विधान है|

उदघोष यही हो रहा उन्नति बड़ी हुई, 
पर प्राण अभी दे रहा भूखा किसान है|

वो खोज करें आप जो धरती सँवार दे, 
श्रीमान भयाक्रांत तो सारा जहान है|

क्यों बैर बढ़ा गैर सा जब मेल के लिए, 
इन्जील अवेस्ता तुका गीता कुरान है|

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