Wednesday, February 19, 2014

गीत लिखता हूँ गाता हूँ..

जिन शब्दों से शान्ति पनपती, उन्हें सुनाता हूँ,
इंसानों को इंसानों जैसा अपनाता हूँ| 
गीत लिखता हूँ गाता हूँ|| 

खेत खलियानों की आशा, गाँव-गलियों की अभिलाषा,
मौन रह प्रेरित करती जो, दर्द दलने की शुचि भाषा,
सीखता और सिखाता हूँ| 
गीत लिखता हूँ गाता हूँ||

नैन ये कहीं नहीं झुकते, भाव अनुभाव नहीं रुकते,
पूर्ण ऋण जन्मदायिनी के, जानता हूँ न कभी चुकते|
काव्य कर्त्तव्य निभाता हूँ|
गीत लिखता हूँ गाता हूँ|| 

कर्म का क्षेत्र विश्वव्यापी, धर्म कहता जिनको पापी,
सूत्र जीवन संवर्धन के, समझते जो न चरण चापी|
चित्त वे सुप्त जगाता हूँ| 
गीत लिखता हूँ गाता हूँ||

काव्य वाणी युग कल्याणी, बोलते जिसे प्रकृति प्राणी,
नित्य उस अनुशासन द्वारा, भेदकर अन्तर पाषाणी|
अमृत रसधार बहाता हूँ|
गीत लिखता हूँ गाता हूँ||

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