Tuesday, February 11, 2014

स्वार्थ के चक्र में...

मंदिरों तक गये मस्जिदों तक गये,
लक्ष्य जाने बिना सूरमा थक गये|

राजवंशी गये पथ नियामक गये,
ताज को छोड़कर धर्म याजक गये|

योग के ढोंग से वक्त के पूर्व ही,
दाँत गल के गिरे बाल सब पक गये|

अर्थ से शक्ति से दूसरों के कभी,
काम आये नहीं बन विधायक गये|

कौन कहता अभी वे अजीवित यहाँ,
शब्द साधक रहे जो कि साधक गये| 

ये 'तुका' विश्व का सत्य है जानिये, 
स्वार्थ के चक्र में प्राण नाहक गये|

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