Friday, February 7, 2014

जीवन गीत


 इस रंग- विरंगे जीवन में, पतझर है कुछ अवशेष नहीं|
हर ओर विसर्जन हावी है, जिसमें मधु मौसम लेश नहीं||

पग-पग इतिहास रचा जाता, कुछ भी तो हाथ नहीं आता,
अपनी कथनी- करनी पर तो, हर ह्रदय हमेशा पछताता| 
जग में परिवर्तन हो न कभी, यह नैसर्गिक सन्देश नहीं|
हर ओर विसर्जन हावी है, जिसमें मधु मौसम लेश नहीं||

हर बौद्ध विवेक विचारक ने, गुण शील सुनीति प्रचारक ने,
जो अनुभव करके बतलाया, जन-जन को जन उद्धारक ने|
जिसमें संरचना हो सकती, वह शिव सुन्दर परिवेश नहीं|
हर ओर विसर्जन हावी है, जिसमें मधु मौसम लेश नहीं||

सबको बहती युग धारा से, लालच की कलुषित कारा से,
बचना संभव जग बीच कहाँ, सच के सिर रक्खे आरा से? 
सबकी गति एक समान यहाँ, अखिलेश विशेष धनेश नहीं| 
हर ओर विसर्जन हावी है, जिसमें मधु मौसम लेश नहीं||

हर साँस जूझती आहों से, दिखता दुख- दर्द निगाहों से,
जितना बनता जो पाक यहाँ, उतना वह भरा गुनाहों से|
जिस पर आया हो क्लेश न वो, लंकेश नहीं अवधेश नहीं| 
हर ओर विसर्जन हावी है, जिसमें मधु मौसम लेश नहीं||

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