ठंगी की कहानी बड़ी रस भरी है ,
शराफत मुरव्वत किनारे धरी है |
उचक्के दिखाने लगे हैं अंगूठा ,
बड़ी दिक्कतों में फंसी अफसरी है |
जहाँ भी निरंकुश रहता प्रशासन ,
वहीँ लोककल्याण की कमतरी है |
बढ़ी इस कदर अब खुशामद पसंदी,
कि कमजोर जनता पड़ी अधमरी है |
उचक्के दिखाने लगे हैं अंगूठा ,
बड़ी दिक्कतों में फंसी अफसरी है |
जहाँ भी निरंकुश रहता प्रशासन ,
वहीँ लोककल्याण की कमतरी है |
बढ़ी इस कदर अब खुशामद पसंदी,
कि कमजोर जनता पड़ी अधमरी है |
जहाँ जा रहा है चढ़ावा चढ़ाया ,
वहां हो रही बेतरह तस्करी है |
व्यवस्था उसे चैन लेने न देती ,
तुकाराम जो बात कहता खरी है |
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