Sunday, November 6, 2011

मिले सहारा भले न कोई, किन्तु नहीं घबराऊंगा|
उपेक्षितों के साथ हमेशा , आगे बढ़ता जाऊँगा ||

जहाँ घिरा घनघोर अँधेरा , दीपक वह जलाना है|
आंधी- पानी तूफानों में, शांति केतु फहराना है | 
मिलन भाव से सिक्त शब्द की, सरस गंध बिखराऊंगा|
उपेक्षितों के साथ हमेशा , आगे बढ़ता जाऊँगा ||

खंडन-मंडन से बच करके, चन्दन-सा बन जाना है |
प्यास बुझाने हेतु धरा की, शील सलिल बरसाना है||
क्षुधा सभी की तृप्त करे जो, वही फसल उपजाऊंगा|
उपेक्षितों के साथ हमेशा , आगे बढ़ता जाऊँगा ||

दुबले-पतले इस शरीर ने, शक्ति अपरिमित पायी है |
निर्धन हूँ पर अंतरमन में,शुचि अनुरक्ति समायी है||
युग प्रबोध के नियम-उपनियम, जन-जन को समझाऊंगा|
उपेक्षितों के साथ हमेशा , आगे बढ़ता जाऊँगा ||

जलचर,नभचर मृगवृन्दों ने ,स्नेहल स्वर अपनाया है|
सुनो आप समझो तो भैया, कवि ने ह्रदय सजाया है ||
मानव हूँ बस मानव हित में, मार्ग नवीन बनाऊंगा|
उपेक्षितों के साथ हमेशा , आगे बढ़ता जाऊँगा |

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