Sunday, November 22, 2015

सच्चाई के समरांगण में


सच्चाई के समरांगण में, क्या डरना श्रीमान?
आगे आयें शिव सच बोलें, कहता राष्ट्र विधान||
आपस में अब नहीं किसी को, अलग-थलग करना है|,
संवर्धन के पथ रचने को, पहले पग धरना है||
सर्जनात्मक नहीं रोकना, क्षण भर भी अभियान|
आगे आयें शिव सच सच बोलें, कहता राष्ट्र विधान||
राजा रानी के महलों की, गायें नहीं कहानी|
लोकतान्त्रिक इस दुनिया में, सोच करें विज्ञानी|
नाटकीयता से हो सकता, नहीं रंच उत्थान|
आगे आयें शिव सच बोलें, कहता राष्ट्र विधान||
कहने को जो नेत्र खुले है, उनमें घना अँधेरा|
स्वर्ण सवेरा लाने वाले, रवि ने ही मुँह फेरा||
कर्मवीर तो याचित करते, कभी नहीं अनुदान|
आगे आयें शिव सच बोलें, कहता राष्ट्र विधान||

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