प्रीति-रीति में असह शब्द,अनवरत कहें फिरभी ,
प्यार तुम्हारे लिए ह्रदय में, बहता रहता है |
स्वार्थसिद्धि का सूत्र न जाना,तज न सका सहकार निभाना,
फिरभी निराधार शंका ने,क्षमाहीन अपराधी माना|
द्वेष-दम्भ के वाण सहस्रों बार सहे फिरभी,
प्यार तुम्हारे लिए ह्रदय में, बहता रहता है |
भलीभाँति जाने पहचाने,लगने लगे अधिक अनजाने,
बारम्बार वियोगी मन को,रुला रहे सम्बन्ध पुराने|
स्नेह भाव के नहीं अल्प उपहार गहे फिरभी,
प्यार तुम्हारे लिए ह्रदय में, बहता रहता है |
स्वयं सभी कुछ सह लेता हूँ,जीवन नौका यों खेता हूँ,
लाख अभावों में रहकर भी,नहीं किसी को दुख देता हूँ|
साथ-साथ में नित्य बने लाचार रहे फिरभी,
प्यार तुम्हारे लिए ह्रदय में, बहता रहता है |
प्यार तुम्हारे लिए ह्रदय में, बहता रहता है |
स्वार्थसिद्धि का सूत्र न जाना,तज न सका सहकार निभाना,
फिरभी निराधार शंका ने,क्षमाहीन अपराधी माना|
द्वेष-दम्भ के वाण सहस्रों बार सहे फिरभी,
प्यार तुम्हारे लिए ह्रदय में, बहता रहता है |
भलीभाँति जाने पहचाने,लगने लगे अधिक अनजाने,
बारम्बार वियोगी मन को,रुला रहे सम्बन्ध पुराने|
स्नेह भाव के नहीं अल्प उपहार गहे फिरभी,
प्यार तुम्हारे लिए ह्रदय में, बहता रहता है |
स्वयं सभी कुछ सह लेता हूँ,जीवन नौका यों खेता हूँ,
लाख अभावों में रहकर भी,नहीं किसी को दुख देता हूँ|
साथ-साथ में नित्य बने लाचार रहे फिरभी,
प्यार तुम्हारे लिए ह्रदय में, बहता रहता है |
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