Friday, May 25, 2012

कहने को बहुत है सोचते रहिये|
कुछ संभावनायें खोजते रहिये||
मुमकिन है आपको मंच मिल जाये,
जो समुचित लगे वो बोलते रहिये|
सच्चाई कभी तो ज्ञात हो सकती,
बस साधक की तरह शोधते रहिये|
यह धरती हरी-भरी रखनी है तो,
प्रिय! कुछ नये पौधे रोपते रहिये|
नायक बन सकते हो शर्त यही है,
सबके सम्मुख हाथ जोड़ते रहिये|
कविता का उद्देश्य यही है दोस्तो!,
मानवता के मूल्य पोषते रहिये|
'तुकाराम' शब्द शक्ति के संबल से,
अनैतिकता को झकझोरते रहिये|

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