Saturday, May 5, 2012

आप अपने आप को पहचानिये प्यारे!,
श्रेष्ठ हो इस जिद्द को मत ठानिये प्यारे!

जाति- मजहब, क्षेत्र की पहचान है झूठी,
आदमी को आदमी भर जानिये प्यारे!

लक्ष्य तक जाती नहीं अन्याय की राहें,
न्यायवर्धक केतुओं को तानिये प्यारे!

स्वप्न रूपी सत्य की जो सैर करवाये,
भाँग ऐसी भूलकर मत छानिये प्यारे!

सत्य के पहचान की केवल कसौटी ये,
तर्क पर जो हो खरी वो मानिये प्यारे!

ये' तुका' है शर्त पहली काव्य जीवन की,
मोह कीचड़ में ह्रदय मत सानिये प्यारे!

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