Wednesday, May 23, 2012

देखा-परखा समझा दुख-सुख,कवि ने बहुत करीब से|
जीवन जिया नहीं जा सकता,बहुत अधिक तरतीब से ||
चौथेपन तक आते-आते, विदित हुआ यह तथ्य भी,
जटिल कार्य हल हो सकते हैं,चिंतन की तरकीब से|
जो आँधी -सा चले हमेशा,गरजे -बरसे मेघ -सा 
वह भी बदले-बदले अब तो,दिखते बहुत अजीब से|
बचपन में माँ ने सिखलाया,तदुपरांत गुरुदेव ने,
लेकिन अब तक सीख रहा हूँ,मन को खोल हबीब से|
कुछ ऐसे भी बड़े लोग हैं,जो हम सबको लूटते,
पर कहते फिरते दुनिया में,सब कुछ मिला नसीब से| 
इनको पता नहीं क्या करते,करना इन्हें मुआफ़ भी,
निज बधिकों के हेतु दुआ यह,करते यीशु सलीब से|
जिसे जरूरत हो वह माँगे,उसकी अपनी सोच है,
मगर 'तुका'को नहीं माँगना,कुछ भी कभी हसीब से|

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