Friday, May 18, 2012

आत्मतोष के हेतु परिश्रम, करते हैं भरपूर,
हमेशा कर्मवीर मजदूर|
हमेशा कर्मवीर मजदूर||

श्रमिक-शक्ति शाश्वत कल्याणी,श्रमिकों को प्रिय है जग प्राणी,
श्रम ने समझी सदा सुनायी, मानवीय गरिमा की वाणी|
फिर भी विविध अभाव झेलते,श्रमसेवी मजबूर,
हमेशा कर्मवीर मजदूर|
हमेशा कर्मवीर मजदूर||

श्रम की त्यों सम्प्रभा निराली,सुख देती है ज्यों हरियाली,
श्रमिक वर्ग ने सकल सृष्टि की,युग प्रबोध तस्वीर सँभाली|
आदिकाल से सर्जनात्मक,श्रमिकों के दस्तूर,
हमेशा कर्मवीर मजदूर|
हमेशा कर्मवीर मजदूर||

प्रगति मूल हैं श्रमिक हमारे,यों उज्ज्वल ज्यों नभ के तारे,
प्रकृति गवाही स्वतः दे रही,श्रम से स्वर्णिम साँझ-सकारे|
श्रमिक दूर यों करें दर्प ज्यों,पाल में उड़े कपूर|
हमेशा कर्मवीर मजदूर|
हमेशा कर्मवीर मजदूर||

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