Sunday, May 13, 2012

धर्म-कर्म को सखे!,आधुनिक विचार दो|
प्रेम के प्रकाश को, विश्व में पसार दो ||

मीत उसी गीत से,जानिये कि त्राण है|
जो सुप्रीति से करे,नीति पूर्ण प्राण है ||
भूख-प्यास त्रास की,कश्तियाँ उबार दो|
प्रेम के प्रकाश को, विश्व में पसार दो||

आह ने कराह ने, नव्य भव्य राह दी|
चाह के प्रवाह ने,स्नेह की निगाह दी||
जीव-जंतु को सदा,प्यार दो दुलार |
प्रेम के प्रकाश को, विश्व में पसार दो||

साधना बिना कभी, सर्जना हुई नहीं|
भावना बिना कभी,अर्चना हुई नहीं ||
शब्द के प्रयोग से, अर्थ को निखार दो|
प्रेम के प्रकाश को, विश्व में पसार दो||

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