Saturday, May 5, 2012

बहुत दिनों से गीत पोस्ट नहीं किया एक गीत प्रस्तुत है,जो स्वतंत्रता की ५०वीं वर्ष गाँठ पर लिखा था| पुनः विचार कीजिये कि इन १५ वर्षों बाद भी सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन के व्यवहार में क्या अंतर आया है :-

किसको रोना यहाँ पड़ रहा,किसमें है उल्लास?
अब स्वदेश की आज़ादी के,बीते वर्ष पचास ||

झूठी निकली घोषित बातें,झूठे निकले नारे|
कहाँ दूध सरितायें,लाखों,फिरें भूख से मारे?
नहीं अभी तक हो पाया है,घर-घर बीच प्रकाश|
अब स्वदेश की आज़ादी के,बीते वर्ष पचास ||

शासन की सम्पूर्ण व्यवस्था,फँसी हुई छलियों में|
समता ममता न्याय बन्धुता,विलख रही गलियों में||
सुमन लताओं का होता है,नित्य भविष्य विनाश|
अब स्वदेश की आज़ादी के,बीते वर्ष पचास ||

श्रमिकों को श्रम की मजदूरी,अभी न मिलती पूरी|
ढाबों में जूठन खाती है, बच्चों की मजबूरी||
न्याय नीतियों का करते हैं,पूँजीपति परिहास |
अब स्वदेश की आज़ादी के,बीते वर्ष पचास ||

भौतिकता की चकाचौंध में,सच वे देख न पाते|
जो मानव से अधिक मित्रता,धन के साथ निभाते||
अन्तर को दे रहा वेदना , विष जैसा विश्वास |
अब स्वदेश की आज़ादी के,बीते वर्ष पचास ||

No comments:

Post a Comment