Thursday, May 10, 2012

दिन को दिन कहना जीवन में,जिसे रहा स्वीकार,
उसी ने जिया उचित व्यवहार|
उसी ने किया उचित व्यवहार||

मरुस्थलों को मैदानों को,शिखर वादियों तूफ़ानों को,
साम्य दृष्टि से रहा देखता,जो धरती के सब प्राणों को|
मौन पत्थरों के अंतर की, सुनता रहा पुकार|
उसी ने जिया उचित व्यवहार||
उसी ने जिया उचित व्यवहार||

रात-रात भर जगा न सोया,चकाचौंध में कभी न खोया,
शोध हेतु जो शाधक जैसा, बना विवेकी ज्ञान संजोया|
पतझर को वासंती -सी दी, समरस सुखद बहार|
उसी ने जिया उचित व्यवहार|
उसी ने जिया उचित व्यवहार||

पर दुख में कर कभी न खींचे,शिवम पारखी नेत्र न मींचे,
वृक्ष लतायें उर बागीचे,जीवन जल से अविरल सींचे |
बिका मुफ्त में जो कि लुटाता, रहा सभी को प्यार |
उसी ने जिया उचित व्यवहार||
उसी ने जिया उचित व्यवहार||

हरे चनों की हरियाली-सा,खिलती सरसों की डाली-सा,
फूली-फली फस्ल जब देखी,तब हँस पड़ा कृषक माली-सा|
उसी ने जिया उचित व्यवहार||
उसी ने जिया उचित व्यवहार||

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