Thursday, May 10, 2012

उसका योगदान किस हित का,जो करता निज कर्म नहीं है|

पड़ा बुद्धि पर जिसके ताला, उसको लगे अमृत-सी हाला,
अपनी सदा सभी से क़हता,सुनता कभी नहीं मतवाला|
वही फूल-फल रहा आजकल,जिसमें किंचित शर्म नहीं है,
उसका योगदान किस हित का,जो करता निज कर्म नहीं है|

उसे किसी ने कभी न जांचा,जिसने नित्य नग्न हो नांचा,
वही गया दुतकारा जिसने,योजित किया न आंचा-पांचा |
जितने चाहे तन पर लादो,रक्षा करता वर्म नहीं है,
उसका योगदान किस हित का,जो करता निज कर्म नहीं है|

जिसने परसेवा अपनायी,निश्चय उसे मिले प्रभुतायी,
अन्यायों की रोक-थाम के,हेतु सदा आवाज़ उठायी |
वह यौवन भी कैसा जिसका,शोणित रहता गर्म नहीं है,
उसका योगदान किस हित का,जो करता निज कर्म नहीं है|

अध्यापक युग का निर्माता,छात्र नव्य चिंतन अपनाता,
नागरिकों की जगे चेतना,कवि संवर्धन छंद विधाता|
वर्तमान अनदेखा करना,इन्सानों का धर्म नहीं है,
उसका योगदान किस हित का,जो करता निज कर्म नहीं है|

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