कुबेरों की गरीबी का जिसे अहसास हो जाता|
फकीरी ज़िन्दगी क्या है उसे आभास हो जाता||
सहस्रों वेदनाओं से, कभी विचलित न वो होता,
अभावों बीच रहने का जिसे अभ्यास हो जाता|
जहाँ पतझर दिखाता है प्रकृति के बीच मायूसी,
वहाँ दो चार दिन के बाद ही मधुमास हो जाता|
उसी के स्वप्न सब साकार होते हैं जमाने में,
जिसे अपने इरादों पर सहज विश्वास हो जाता|
जिन्हें परमार्थ करने में सरस आनंद आता है,
समझिये दूर उनसे तो विकट संत्रास हो जाता|
किसी के रोकने से क्या भला न्यायी कभी रुकता,
कभी सुकरात बन जाता कभी रविदास हो जाता|
नयी पहचान जीवन में अनोखा मर्तबा मिलता,
'तुका' साहित्य सर्जक तो जगत इतिहास हो जाता|
फकीरी ज़िन्दगी क्या है उसे आभास हो जाता||
सहस्रों वेदनाओं से, कभी विचलित न वो होता,
अभावों बीच रहने का जिसे अभ्यास हो जाता|
जहाँ पतझर दिखाता है प्रकृति के बीच मायूसी,
वहाँ दो चार दिन के बाद ही मधुमास हो जाता|
उसी के स्वप्न सब साकार होते हैं जमाने में,
जिसे अपने इरादों पर सहज विश्वास हो जाता|
जिन्हें परमार्थ करने में सरस आनंद आता है,
समझिये दूर उनसे तो विकट संत्रास हो जाता|
किसी के रोकने से क्या भला न्यायी कभी रुकता,
कभी सुकरात बन जाता कभी रविदास हो जाता|
नयी पहचान जीवन में अनोखा मर्तबा मिलता,
'तुका' साहित्य सर्जक तो जगत इतिहास हो जाता|
No comments:
Post a Comment