Friday, July 11, 2014

कन्याओं के भ्रूण गिराते,

जर जोरू जमीन भी छीनी जाने लगी कमेरों की|
अधिवक्ता बन गई व्यवस्था डाकू चोर लुटेरों की|| 

बातों से बरसे चतुराई, कामों में झलके ठकुराई,
सत्ता के सातों सुख भोगें, ऊपर से बनते रघुराई|
उजियारे के अभियानों में, घटी न पीर अँधेरों की| 
अधिवक्ता बन गई व्यवस्था डाकू चोर लुटेरों की|| 

कन्याओं के भ्रूण गिराते, अन्यायों को गले लगाते,
ठगुआ पंचायत लगवाकर; निर्दोषों को सजा सुनाते| 
क्रूर प्रशंसा करते दिखते, कुछ जंगल के शेरों की| 
अधिवक्ता बन गई व्यवस्था डाकू चोर लुटेरों की|| 

जो हैं सरकारी सुविधायें, उन्हें गरीबे देख न पायें, 
नाम निर्धनों का ले लेके, धनवानों को गले लगायें|
कड़वी औषधि अब पीनी है, सब को हर्र बहेरों की| 
अधिवक्ता बन गई व्यवस्था डाकू चोर लुटेरों की||

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