मिली आँच सत्ता उबलने लगे हैं|
गरम दूध जैसा उफनने लगे हैं||
उन्हें छीनने की पड़ी आदतें जो,
निडर बानरों-सा उछलने लगे हैं|
जिन्हें श्रेष्ठ गुणवान माने हुये हो,
वही निर्बलों से उलझने लगे हैं|
छिपाये रहे पर छिपे जो नहीं वे,
कलुष कारनामे उभरने लगे हैं|
फुहारे गिरी मौसमी तो हज़ारों,
यहाँ मेढ़कों-सा उचकने लगे हैं|
सदा नीर को जो तरसते रहे वे,
'तुका' बादलों-सा उमड़ने लगे हैं|
गरम दूध जैसा उफनने लगे हैं||
उन्हें छीनने की पड़ी आदतें जो,
निडर बानरों-सा उछलने लगे हैं|
जिन्हें श्रेष्ठ गुणवान माने हुये हो,
वही निर्बलों से उलझने लगे हैं|
छिपाये रहे पर छिपे जो नहीं वे,
कलुष कारनामे उभरने लगे हैं|
फुहारे गिरी मौसमी तो हज़ारों,
यहाँ मेढ़कों-सा उचकने लगे हैं|
सदा नीर को जो तरसते रहे वे,
'तुका' बादलों-सा उमड़ने लगे हैं|
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