Friday, August 1, 2014

नय नयन चाहिये



लघु सदन चाहिये ज़िन्दगी के लिए|
शुचि चलन चाहिये ज़िन्दगी के लिए|

तन वदन का मिलन तो जरूरी नहीं,
मन मिलन चाहिये ज़िन्दगी के लिए|

कुछ शरारत भरे शब्द प्रिय! बोलिये,
नव कथन चाहिये ज़िन्दगी के लिए|

भ्रूण अपराध पल- पल बहुत बढ़ रहे, 
माँ- बहन चाहिये ज़िन्दगी के लिए|

बढ़ रहा जेठ की धूप- सा बैर तो,
अब अमन चाहिये ज़िन्दगी के लिए| 

छल दुराभाव को जो करे दूर वो,
संयमन चाहिये ज़िन्दगी के लिए|    

जड़ व्यवस्था बदल जो सके वो तुका ,
नय नयन चाहिये ज़िन्दगी के लिए|
          

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