बातों के हो शेर तुम्हारा क्या कहना|
दोषारोपण ढेर तुम्हारा क्या कहना||
दोषारोपण ढेर तुम्हारा क्या कहना||
बढ़ता भ्रष्टाचार कराओ बन्द नहीं,
होने दो कुछ देर तुम्हारा क्या कहना|
होने दो कुछ देर तुम्हारा क्या कहना|
यूँ हो कडुवे बेर मगर निज चेलों को,
लगते मीठे केर तुम्हारा क्या कहना|
लगते मीठे केर तुम्हारा क्या कहना|
जो भी करें विरोध समय की सत्ता के,
कोल्हू में दो पेर तुम्हारा क्या कहना|
कोल्हू में दो पेर तुम्हारा क्या कहना|
लेन-देन का खेल कहे धनवानों का,
काला धन दो फेर तुम्हारा क्या कहना|
काला धन दो फेर तुम्हारा क्या कहना|
बनके युग अवतार खुले इन हाथों से,
बाँटो झूठे बेर तुम्हारा क्या कहना|
बाँटो झूठे बेर तुम्हारा क्या कहना|
तुकाराम की चाह यही है सुनिये तो,
बढ़े नहीं अंधेर तुम्हारा क्या कहना|
बढ़े नहीं अंधेर तुम्हारा क्या कहना|
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