Monday, April 30, 2012

गीत को नवगीत का आकार देता हूँ|
लीजिये मैं ज़िन्दगी का प्यार देता हूँ||
कीजिये उपयोग  इसका आप अपने ही 
शब्द का  शाश्वत सरस संसार  देता हूँ|
जिन्हें सफाई चाहिये,करें गंदगी साफ|
बिना बात प्रिय! राष्ट्र के,बोलें नहीं खिलाफ||
धन बल से होगी,नहीं कभी गंदगी साफ|
किसी मूल्य पर ज्यों न दे, स्वर्ण विशुद्ध  सराफ़||
 सत्ता की इच्छा बिना,किसका कहाँ बजूद|
कहिये किसने राष्ट्र से, मिटा दिया हरसूद?
जिसकी कटि कट्टा बँधा,जीभ उगलती शूल|
ऐसे द्रोणाचार्य को,शिष्य चढ़ाते फूल||
बौद्ध यीशु के शिष्य भी,बना रहे अणु अस्त्र |
तन पर वस्त्र अमूल्य हैं,अभ्यंतर निर्वस्त्र||
गांधी जी के देश में,कई अहिंसक लोग|
हिंसा करने के लिए,करते नव्य प्रयोग||
कौन उन्हें कब भूलता,जो करते हैं त्याग?
संघर्षों क अर्थ है,जीवन में अनुराग ||
बाँध नहीं सकते उसे, कभी मृत्यु के पाश|
अर्पित करता लोक को,जो परमार्थ प्रकाश||
सीख लीजिए प्रगति प्रदायी,कुछ नवीनतम लटके|
वरना जीवन भर फिरियेगा,दर-दर भटके-भटके ||

छीन झपट कर जो मिल जाये,उसे बटोरे जाओ|
जाति-वर्ग मजहब के लफड़े-झगड़े नित्य कराओ||
... खद्दर पहन करो मनमानी,जिये सदा बे खटके,
सीख लीजिए प्रगति प्रदायी,कुछ नवीनतम लटके|
वरना जीवन भर फिरियेगा,दर-दर भटके-भटके ||

तम को नव प्रकाश कहने में,शर्म न किंचित खाओ|
अपने हित के लिए अनय के,गीत हमेशा गाओ ||
श्री वैभव से भर कुम्भ को,एक घूँट में गटके,
सीख लीजिए प्रगति प्रदायी,कुछ नवीनतम लटके|
वरना जीवन भर फिरियेगा,दर-दर भटके-भटके ||

राष्ट्रभक्त पर राष्ट्रद्रोह के,चस्पे कई लगा दो|
पापा -मम्मी, बंधु-बहन को,सत्ता हेतु दगा दो||
साथ उन्हें लो रहें सदा जो,सत्कर्मों से कटके,
सीख लीजिए प्रगति प्रदायी,कुछ नवीनतम लटके|
वरना जीवन भर फिरियेगा,दर-दर भटके-भटके ||

आस-पास में उठा-पटक के,मन्त्र फूँकना जानो|
नित्य मान-सम्मान मिलेगा,उस खल का बल मानो||
जो अपने घर के कचरे को,पड़ोसियों घर पटके,
सीख लीजिए प्रगति प्रदायी,कुछ नवीनतम लटके|
वरना जीवन भर फिरियेगा,दर-दर भटके-भटके ||

Saturday, April 28, 2012

सहकारी जीवन पद्धिति से, बढ़ता ऐसा प्यार|
ज़िन्दगी हो सकती गुलज़ार|
चतुर्दिक हो सकता अभिसार||

आपस में सहयोग सोच की, जब सरिता बहती है|
तब जीवन-जल के प्रवाह की, कमी नहीं रहती है||
हिल-मिलकर करने लगते हैं, प्रमुदित हो उपकार| 
ज़िन्दगी हो सकती गुलज़ार|
चतुर्दिक हो सकता अभिसार||

एक-दूसरे के हित में निज,हित दिखने लगते हैं|
कभी किसी के किसी तरह से,स्वत्व नहीं ठगते हैं||
मुक्त ह्रदय से वितरित करते, उपयोगी उपहार|
ज़िन्दगी हो सकती गुलज़ार|
चतुर्दिक हो सकता अभिसार|| 

दिन-प्रतिदिन के व्यवहारों में,नया राग जगता है|
यह अपना वह गैर,बैर का, रोग दूर भगता है||
सब सबको अपनाते यों-ज्यों, जगत एक परिवार|
ज़िन्दगी हो सकती गुलज़ार|
चतुर्दिक हो सकता अभिसार||

Thursday, April 26, 2012

खोज सका जो नहीं स्वयम् को अपने जीवन में,
वह तज सके न कभी अहम को अपने जीवन में|

नित्य भलाई करे हरे पर पीडा दुखियों की,
संत न चाहे रहम करम को अपने जीवन में|
प्यार जिसे है सकल सृष्टि के इंसानों से वो,
कंठ लगाये व्यथित अधम को अपने जीवन में|

ज्ञात जिसे हों नियम प्रकृति के परिवर्तनदायी,
वह अनुभव क्यों करे अदम को अपने जीवन में?

न्याय नहीं कर सके शब्द के शिव प्रयोग से जो,
वह दूषित क्यों कर क़लम को अपने जीवन में?

काव्य वही है 'तुका' कि जिसका अर्थ समझने से,
जान सके उर सर्वोत्तम को अपने जीवन में |

Tuesday, April 24, 2012

मालूम क्या उन्हें जो तस्वीर है हमारी?
मन का मज़ा बदलना तासीर है हमारी|

आये गये सहस्रों कैसे किसे बतायें,
जो पास है हमारे वो पीर है हमारी|

क्यों और पर लगायें आरोप बंधनों का,
जो पैर में पड़ी वो ज़ंजीर है हमारी |

सोते हुए हमेशा ये ज़िन्दगी बिताऊं,
ऐसी बुरी नहीं तो तक़दीर है हमारी|

कोई हँसे भले ही हँसता रहे जहाँ में,
जन्नत यहीं बनाऊं तदवीर है हमारी|

दुश्मन दुलारने की तुमने कथा किसी से,
शायद कहीं सुनी हो तक़रीर है हमारी|

जो कह रहा 'तुका' वो केवल अदब नहीं है,
साखी कबीर जैसी तहरीर है हमारी |

Monday, April 23, 2012

इस भूतल पर अनुरक्ति भरा,संगीत सुनाने आया हूँ|
कवि हूँ कविता की महिमा का,अभियान चलाने आया हूँ|| 

कब कहाँ किधर किस कारण से,चल पड़े कदम यह बोध नहीं|
नित बढ़ते अपने आप रहे,पथ रोक सके अवरोध नहीं||
सदियों से रहे उपेक्षित जो,उनको अपनाने आया हूँ|
कवि हूँ कविता की महिमा का,अभियान चलाने आया हूँ||

जिस क्षण से नन्हे पैरों ने,कुछ बोझ उठाना जान लिया|
उस पल स्वयमेव ज़िन्दगी ने,कर्तव्य मार्ग पहचान लिया||
जग महक सके जिन सुमनों से,मैं उन्हें उगाने आया हूँ |
कवि हूँ कविता की महिमा का,अभियान चलाने आया हूँ|| 

तन की धन की अभिलाषायें,पहली श्रेणी में आ न सकी|
आकर्षण की देहिक राहें,किंचित चिंतन को भा न सकी||
निर्मल कर दे जन जीवन जो,वह धार बहाने आया हूँ |
कवि हूँ कविता की महिमा का,अभियान चलाने आया हूँ||