Monday, April 23, 2012

इस भूतल पर अनुरक्ति भरा,संगीत सुनाने आया हूँ|
कवि हूँ कविता की महिमा का,अभियान चलाने आया हूँ|| 

कब कहाँ किधर किस कारण से,चल पड़े कदम यह बोध नहीं|
नित बढ़ते अपने आप रहे,पथ रोक सके अवरोध नहीं||
सदियों से रहे उपेक्षित जो,उनको अपनाने आया हूँ|
कवि हूँ कविता की महिमा का,अभियान चलाने आया हूँ||

जिस क्षण से नन्हे पैरों ने,कुछ बोझ उठाना जान लिया|
उस पल स्वयमेव ज़िन्दगी ने,कर्तव्य मार्ग पहचान लिया||
जग महक सके जिन सुमनों से,मैं उन्हें उगाने आया हूँ |
कवि हूँ कविता की महिमा का,अभियान चलाने आया हूँ|| 

तन की धन की अभिलाषायें,पहली श्रेणी में आ न सकी|
आकर्षण की देहिक राहें,किंचित चिंतन को भा न सकी||
निर्मल कर दे जन जीवन जो,वह धार बहाने आया हूँ |
कवि हूँ कविता की महिमा का,अभियान चलाने आया हूँ||

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