Wednesday, April 4, 2012

नौकरी के बोझ ने इतना दबाया है|
न्याय का अक्षर कभी मुँह पर न आया है||

क्यों उसे विश्वास काबिल लोग मानेंगे,
एक पल जिसने न खुद को आजमाया है?

लोग अपने आपको जो संत कहते हैं,
क्या उन्होंने संत-सा जीवन बिताया  है?

वक्त ने साहस दिखाया प्रश्न यों पूछा ,
स्याह धन कितना कहाँ किसने छिपाया है?

वो भला अपराध से क्यों हाथ धोयेगा,
पा रहा जो राजनैतिक छत्रछाया है?

कौन कर सकता उसे साहित्य से खारिज,
धर्म कविता का 'तुका' जिसने निभाया है?

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